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सूर्या मंदिर कोणार्क की एक अद्भुत ज्यामिति रचना है, यह पाषाण कला का अनुपम उदाहरण है परंतु यह मंदिर वास्तु-नियमों के विरुद्ध बने होने के कारण समय से पूर्व ही धराशायी हो गया | कोणार्क शब्द का संधि-विक्छेद है, संधि शब्द का अर्थ है मेल, जब दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो परिवर्तन होता है वह संधि कहलाता है | यह कोणार्क शब्द 'कोण' और 'अर्क' शब्दों के मेल से बना है। कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से है और अर्क का अर्थ होता है सूर्य अर्थात किनारे पर सूर्या | कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के पास बना हुआ है | यह मंदिर सूर्य देव के रथ के रूप में बना है | पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था | साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक माने जाते थे, उन्होने इस रोग का भी अन्त किया। उनके सम्मान में, साम्ब ने एक सूर्या मंदिर बनाने का निश्चय किया | अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभाग नदी में स्नान करते हुए, उन्हें वहाँ एक सूर्यदेव की मूर्ति मिली | यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी | साम्ब ने इस मूर्ति की स्थापना मित्रवन के एक मंदिर में किया तभी से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा | सूर्य देवता के रथ में १२ जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें ७ घोड़ों से खींचे जाते है | सूर्य देव के रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पर उत्तम नक्काशी भी की गई है | राजा नृसिंहदेव ने १२३६– १२६४ ई.पू. में इस मंदिर का निर्माण करवाया था |
सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर सूर्य देव के सभी लक्षणों को दर्शाता है, ये १२ चक्र साल के बारह महिनों को दर्शाते हैं, जबकि प्रत्येक चक्र ८ अरों से मिल कर बना है, जो कि दिन के ८ पहरों को बताते हैं |राजा नृसिंह देव प्रथम ने मंदिर निर्माण का आदेश दिया। १२०० वास्तुकारों और कारीगरों को १२ वर्षों में निर्माण का आदेश दिया लेकिन निर्माण की पूर्णता कहीं दिखायी नहीं दे रही थी तब राजा ने एक निश्चित तिथि तक कार्य पूर्ण करने का कड़ा आदेश दिया | बिसु महाराणा के पर्यवेक्षण में, संपूर्ण प्रकार के निर्माण हो जाने पर शिखर के निर्माण की एक समस्या उठ खड़ी हुई, शिखर निर्माण के बिना सब असंभव लग रहा था तभी बिसु महाराणा का १२ वर्षीय पुत्र, धर्म पाद आगे बढ़ा और उसने तब तक के हुए निर्माण का गहन निरीक्षण किया, हालांकि धर्म पाद को मंदिर निर्माण का व्यवहारिक ज्ञान नहीं था, परन्तु उसने मंदिर स्थापत्य के शास्त्रों का पूर्ण अध्ययन किया हुआ था। उसने मंदिर के अंतिम केन्द्रीय शिला को लगाने का सुझाव दिया, उसका यह कहना सबको आश्चर्य में डाल दिया परंतु शिखर निर्माण का कार्य पूरा करा दिया तदुपरांत धर्म पाद ने सोचा की अगर ये बात राजा को पता होगा की मैने उनकी सहयता की है तो राजा उनसे नाराज हो जाएँगे और सभी को मृतु दंड दे देंगे इसलिए उसने सबके हितो को ध्यान में रख कर उसने उस शिखर से कूदकर आत्महत्या कर ली ऐसा कहा जाता है |
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सूर्य मंदिर के शिखर पर दो शक्तिशाली चुंबक पत्थर लगा है | इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाली जहाज और नौकाएँ, इस ओर अपने-आप खिंचे चले आते है और टकराकर नष्ट हो जाती थी जिससे उन्हें भारी क्षति पहुचती थी | अन्य कथा अनुसार, इस पत्थर के कारण जहाज और नौकाएँ के चुम्बकीय दिशा निरुपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते थे | जिससे उन्हें दिशा भ्रम हो जाता था इस कारण अपने नौकाएँ को बचाने हेतु, मुस्लिम नाविक इस पत्थर को मंदिर के शिखर से निकाल दिए | यह पत्थर शिखर में केन्द्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के पश्चात मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और परिणामतः वे गिर के बिखर गयी | काफ़ी वर्षो तक यह मंदिर रेत से ढाका रहा जब अंग्रेज़ो को इस मंदिर के बारे में जानकारी मिली तो उन्होने इसकी खुदाई शुरू करा दी और पुन: इस मंदिर की देखभाल शुरू कर दी और इसे युनेस्को द्वारा सन् १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित भी किया गया |
Very Knowledgeable..
ReplyDeleteKeep it up...
Thank U :)
DeleteVery Knowledgeable..
ReplyDeleteKeep it up...
Nice documentary Ankit...
ReplyDeleteGreat work Ankit. Keep writing..
ReplyDeleteGood work ankit. Keep it up
ReplyDeleteNice detail information about Konark.Thanks.
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