Sunday, February 21, 2016

Sun Temple Konark


Google Pic

Google Pic
सूर्या मंदिर कोणार्क की एक अद्भुत ज्यामिति रचना है, यह पाषाण कला का अनुपम उदाहरण है परंतु यह मंदिर वास्तु-नियमों के विरुद्ध बने होने के कारण समय से पूर्व ही धराशायी हो गया | कोणार्क शब्द का संधि-विक्छेद है, संधि शब्द का अर्थ है मेल, जब दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो परिवर्तन होता है वह संधि कहलाता है | यह कोणार्क शब्द 'कोण' और 'अर्क' शब्दों के मेल से बना है। कोण से अभिप्राय कोने या किनारे से है और अर्क का अर्थ होता है सूर्य अर्थात किनारे पर सूर्या | कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के पास बना हुआ है | यह मंदिर सूर्य देव के रथ के रूप में बना है |  पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था | साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक माने जाते थे, उन्होने इस रोग का भी अन्त किया। उनके सम्मान में, साम्ब ने एक सूर्या मंदिर बनाने का निश्चय किया | अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभाग नदी में स्नान करते हुए, उन्हें वहाँ एक सूर्यदेव की मूर्ति मिली | यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी | साम्ब ने इस मूर्ति की स्थापना मित्रवन के एक मंदिर में किया तभी से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा | सूर्य देवता के रथ में १२ जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें ७ घोड़ों से खींचे जाते है | सूर्य देव के रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पर उत्तम नक्काशी भी की गई है | राजा नृसिंहदेव ने १२३६– १२६४ ई.पू. में इस मंदिर का निर्माण करवाया था | 
  सूर्य देव को समर्पित यह मंदिर सूर्य देव के सभी लक्षणों को दर्शाता है, ये १२ चक्र साल के बारह महिनों को दर्शाते हैं, जबकि प्रत्येक चक्र ८ अरों से मिल कर बना है, जो कि दिन के ८ पहरों को बताते हैं |राजा नृसिंह देव प्रथम ने मंदिर निर्माण का आदेश दिया। १२०० वास्तुकारों और कारीगरों को १२ वर्षों में निर्माण का आदेश दिया लेकिन निर्माण की पूर्णता कहीं दिखायी नहीं दे रही थी तब राजा ने एक निश्चित तिथि तक कार्य पूर्ण करने का कड़ा आदेश दिया | बिसु महाराणा के पर्यवेक्षण में, संपूर्ण प्रकार के निर्माण हो जाने पर शिखर के निर्माण की एक समस्या उठ खड़ी हुई, शिखर निर्माण के बिना सब असंभव लग रहा था तभी बिसु महाराणा का १२ वर्षीय पुत्र, धर्म पाद आगे बढ़ा और उसने तब तक के हुए निर्माण का गहन निरीक्षण किया, हालांकि धर्म पाद को  मंदिर निर्माण का व्यवहारिक ज्ञान नहीं था, परन्तु उसने मंदिर स्थापत्य के शास्त्रों का पूर्ण अध्ययन किया हुआ था। उसने मंदिर के अंतिम केन्द्रीय शिला को लगाने का सुझाव दिया, उसका यह कहना सबको आश्चर्य में डाल दिया परंतु शिखर निर्माण का कार्य पूरा करा दिया तदुपरांत धर्म पाद ने सोचा की अगर ये बात राजा को पता होगा की मैने उनकी सहयता की है तो राजा उनसे नाराज हो जाएँगे और सभी को मृतु दंड दे देंगे इसलिए उसने सबके हितो को ध्यान में रख कर उसने उस शिखर से कूदकर आत्महत्या कर ली ऐसा कहा जाता है | 
Google Pic
   सूर्य मंदिर के शिखर पर दो शक्तिशाली चुंबक पत्थर लगा है |  इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाली जहाज और नौकाएँ, इस ओर अपने-आप खिंचे चले आते है और टकराकर नष्ट हो जाती थी जिससे उन्हें भारी क्षति पहुचती थी | अन्य कथा अनुसार, इस पत्थर के कारण जहाज और नौकाएँ के चुम्बकीय दिशा निरुपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते थे | जिससे उन्हें दिशा भ्रम हो जाता था इस कारण अपने नौकाएँ को बचाने हेतु, मुस्लिम नाविक इस पत्थर को मंदिर के शिखर से निकाल दिए | यह पत्थर शिखर में केन्द्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के पश्चात मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और परिणामतः वे गिर के बिखर गयी | काफ़ी वर्षो तक यह मंदिर रेत से ढाका रहा जब अंग्रेज़ो को इस मंदिर के बारे में जानकारी मिली तो उन्होने इसकी खुदाई शुरू करा दी और पुन: इस मंदिर की देखभाल शुरू कर दी और इसे युनेस्को द्वारा सन् १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित भी किया गया |


Google Pic

Thursday, February 18, 2016

VARANASI

Google Pics
वाराणसी शहर का नाम यहां उपस्थित वरुणा नदी एवं अस्सी घाट दोनो के नाम से मिलकर बना है | इस शहर को और भी दूसरो नामो से भी जानते है काशी और बनारस, काशी इस शहर का प्रचीन नाम है| ये नागरी बाबा विश्वनाथ की नागरी कही जाती है बाबा विश्वनाथ यानी की शिव | शिव जो सबके संहारक माने जाते है लोगो का मानना है की जो लोग लोग काशी में अपने प्राण त्यागते है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है उन्हें सभी जन्म-मरण  के बंधानो से छुटकारा|  बाबा विश्वनाथ का मंदिर गंगा नदी के दशाश्वमेध घाट के समीप है | ब्रह्मा जी ने इसका घाट का निर्माण शिव जी के स्वागत हेतु किया था। दूसरी कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने यहाँ दस अश्वमेध यज्ञ भी किये थे। इसलिए इस घाट को दशाश्वमेध घाट कहते है| इस प्राचीन मंदिर में आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास ये सभी दर्शन करने के लिए आ चुके है | इस प्रचीन नगर का उल्लेख स्कन्द पुराण, रामायण, महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थों में मिलता है। काशी का संबंध महाभारत काल से भी जुड़ा है| वर्णित एक कथा के अनुसार काशी नरेश की पुत्रियों के स्वयंवर पितामह भीष्म ने तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण किया था। इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे। 

भारत के कई कवि, लेखक, दार्शनिक, और संगीतज्ञ का संबंध वाराणसी में रहा हैं, जिनमें प्रमुख कबीरदास, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, पंडित रवि शंकर, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, गिरिजा देवी आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और यहाँ पर गोस्वामी तुलसीदास के नाम पर तुलसी मानस मंदिर है, दुर्गाकुंड के पास स्‍थित है|  गौतम बुद्ध को जब बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होनें अपना प्रथम उपदेश यहीं निकट सारनाथ में दिया था। भारत के कई कवि, लेखक, दार्शनिक, और संगीतज्ञ का संबंध वाराणसी में रहा हैं, जिनमें प्रमुख कबीरदास, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, पंडित रवि शंकर, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, गिरिजा देवी आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और यहाँ पर गोस्वामी तुलसीदास के नाम पर तुलसी मानस मंदिर है, दुर्गाकुंड के पास स्‍थित है|  गौतम बुद्ध को जब बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होनें अपना प्रथम उपदेश यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी हिन्दुओं एवं बौद्धों के अलावा जैन धर्म के अवलंबियों के लिये भी पवित्र तीर्थ है। इसे २३वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का जन्मस्थान भी माना जाता है | वाराणसी को मंदिरो और घाटो की नगरी भी कहा जाता है, वाराणसी में १०० से भी अधिक घाट हैं | इस शहर के बारें में जितना कुछ कहा जाए कम है, परंतु इतना कहना अतिशयोक्ति नही की बहुत सारे किताबें और फिल्म इस शहर पर बन चुके है |

Google Pics



Tuesday, February 16, 2016

Tarkulha Devi

Google Pics
तरकुलहा देवी मंदिर यह हिन्दू भक्तो के लिए  प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है | यह मंदिर गोरखपुर से 20 किलो मीटर कि दूरी पर बसा हुआ है |ये मंदिर का नाम तरकुलहा देवी कैसे पड़ा इसकी पीछे के छोटी सी कहानी है | कहा जाता था की डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह यहाँ रहा करते थे। ये गुर्रा नदी के तट पर तरकुल अर्थात ताड़के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। ये देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी। तभी से वहाँ लोग इस स्थान को तरकुलहा देवी के नाम से जानने लगे| कहा जाता था की बाबू बंधू सिंह की देवी में बहुत आस्था थी वह पूरे मन और ध्यान से देवी की पूजा अर्चना करते थे | उस  समय देश में अंग्रेज आ चुके थे और बाबू बंधू सिंह भी देश के हित के लिए अंग्रेज़ो से लोहा ले लिया, बाबू बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे| कोई अंगेजो को उन्होने उनका सर काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते । जब ये बात अंग्रेज़ो को पता चली तो अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना-कोना छान मारा लेकिन बंधू सिंह अंग्रेज़ो के हाथ न लगे| लेकिन के बार इस इलाके के एक व्यवसायी के मुखबिरी के चलते बंधू सिंह को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी कहा जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। इसके बाद बंधू सिंह ने स्वयं देवी माँ का ध्यान करते हुए मन्नत मांगी कि माँ उन्हें जाने दें।  कहते हैं कि बंधू सिंह की प्रार्थना देवी ने  सुन ली और सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए। बंधू सिंह ने अंग्रेजो के सिर चढ़ा के जो बाली कि परम्परा शुरू करी थी वो आज भी यहाँ देखने को मिलता हैं। अब यहाँ पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में दिया जाता हैं साथ में बाटी भी दी जाती हैं। यह देश का अकेला ऐसा मंदिर है जहाँ प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं।


Thursday, February 11, 2016

Saraswati Puja

Google Pics
ऋग्वेद में माता सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है - प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। बसंत पंचमी के दिन ही माता सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से पृथ्वी पर जल छिड़का,उसी समय चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का जन्म हुआ जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी| तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा| देवी सरस्वती को अनेक नामों से भी पूजा जाता है वीणावादनी, वाग्देवी, बागीश्वरी, भगवती, और शारदा| भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी विद्यार्थी आज के दिन अपने पुस्तक और कलाम की पूजा करते है| 

Wednesday, February 10, 2016

BABA AMARNATH

Google Pics
अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है,यहीं वो धाम है जहाँ भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।इसलिए इस पवित्र जगह का नाम अमरनाथ पड़ा | कथा है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, जिसे सुनकर सद्योजात शुक-शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। इसगुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। वे भी इस अमरकथा सुनकर अमर हो गये हैं। जिन भी श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते  ऐसा माना जाता है और यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती जी को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन है| इसलिए इस कथा को अमरकथा के नाम से भी जाना जाता है| अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता एक मुसलमान गडरिए मालूम हुआ जब वो अपने भेड़-बकरियो को चारा रहा था इसलिए आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। बाबा अमरनाथ के पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक रूप में शिवलिंग का निर्माण होता है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी लोग कहते हैं।यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, बाबा अमरनाथ शिवलिंग के साथ-साथ गणेश जी, पार्वती जी और बाबा भैरव भी हिमानी रूप में दर्शन देते है|

Google Pics

Badrinath Yatra

Google Pics
बद्रीनाथ धाम जो भगवान विष्णु का मंदिर है चारो धमो मे से एक धाम माना  जाता है यह अलखनंदा नदी के किनारे चमोली ज़िले के उत्तराखंड राजया में बसा हुआ है. यात्री केवल 6 महीनो तक ही यहाँ जा सकते है बाकी के 6 महीने यहाँ के रास्ते बंद हो जाते है अप्रेल से नवम्बर का महीना ही उपयुक्ता है इस धाम का यात्रा करने के लिए बाकी के महीने सर्दियो के कारण बंद कर दिए जाते है. गौ मुख से गंगा का उदगम स्थल और ये सीधे बंगाल की खड़ी में जा मिलती है, बंगाल की खड़ी में पहुचने से पहले ये दो भागो में विभाजित हो जाती है और ये बांग्लादेश में जा मिलती है जहाँ इस पद्मा के नाम से पुकारते है और जब ये भारत में जिस स्थान पर ये सागर से जा मिलती है उसे गंगासागर के नाम से भी जाना जाता है. जब भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में यहा तपस्या में मग्न थे तो उस समय बहुत अधिक हिमपात होने लगे और भगवान विष्णु उस स्थान पर बर्फ में पूरे डूब चुके थे उनका यह रूप देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होने भगवान विष्णु के समीप एक बेर के वृष का रूप ले लिया जिससे वो उस बर्फ से उनकी रक्षा कर सके. कई वर्षो तक भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी तपस्या करती रही जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई तो उन्होने देखा की उनके साथ साथ माता लक्ष्मी ने भी कठोर तपस्या किया है तो उन्होने माता लक्ष्मी को ये आशीर्वाद दिया की मेरे साथ आपने भी मेरे साथ बद्री के रूप तपस्या पूरा किया है इसलिए लोग मुझे बद्रीनाथ के नाम से जानेगे. इस प्रकार भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा.

Google Pics

Tuesday, February 9, 2016

Rameshwaram temple shivling

 Google Pics
तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िला में रामेश्वरम् बसा हुआ है. रामेश्वरम् मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लींगो में से एक है. मान्यता ये है की ये भगवान राम के द्वारा स्थापित किया गया ये शिवलिंग है.चारो धामो में रामेश्वरम् का अपना भी अपना एक महत्व है. हिंदू धर्म में 4 धाम की यात्रा को बहुत ही महत्व दिया गया है.जहाँ एक ओर पूरब मे जगानाथपुरी तो दूसरी ओर पश्चिम में द्वारका और उत्तर मे बद्रीनाथ तो दक्षिण में बसा रामेश्वरम् अपने आप मे माना जाना तीर्थ है. मान्यता ऐसी है जब भगवान राम नें लंका पर विजय प्राप्त कर के वापस रामेश्वरम् आए तो उस समय उन्होने भवन शिव की पूजा करने की प्रबल इच्छा जागृत हुई तो उन्होने अपने भक्त हनुमान को कैलाश पर्वत पर भेजा की वहाँ से एक शिवलिंग ले कर आयगे पर उनके काफ़ी प्रतीक्षा परने पर ना लौटे तो माता सीता ने खुद से ही बालू से एक शिवलिंग का निर्माण कर दिया और वहाँ स्थापित कर दिया. जब हनुमान जी वापस लौटे तो देखा की वहाँ पर तो पहले से शिवलिंग स्थापित हो चुका है तब भवन राम ने उनसे कहा की आप के द्वारा लाया गया शिवलिंग विश्वलिंगम के नाम से जाना जाएगा.


JAGANNATH TEMPLE PURI जगन्नाथ मन्दिर, पुरी

जगन्नाथ मन्दिर (पुरी) जो चारो धामों में से एक है जो भारत देश के उड़ीसा राज्य में बसा हुआ है | यह मंदिर श्रधालुओं के लिए बहुत ही आस्था का ...