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बद्रीनाथ धाम जो भगवान विष्णु का मंदिर है चारो धमो मे से एक धाम माना जाता है यह अलखनंदा नदी के किनारे चमोली ज़िले के उत्तराखंड राजया में बसा हुआ है. यात्री केवल 6 महीनो तक ही यहाँ जा सकते है बाकी के 6 महीने यहाँ के रास्ते बंद हो जाते है अप्रेल से नवम्बर का महीना ही उपयुक्ता है इस धाम का यात्रा करने के लिए बाकी के महीने सर्दियो के कारण बंद कर दिए जाते है. गौ मुख से गंगा का उदगम स्थल और ये सीधे बंगाल की खड़ी में जा मिलती है, बंगाल की खड़ी में पहुचने से पहले ये दो भागो में विभाजित हो जाती है और ये बांग्लादेश में जा मिलती है जहाँ इस पद्मा के नाम से पुकारते है और जब ये भारत में जिस स्थान पर ये सागर से जा मिलती है उसे गंगासागर के नाम से भी जाना जाता है. जब भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में यहा तपस्या में मग्न थे तो उस समय बहुत अधिक हिमपात होने लगे और भगवान विष्णु उस स्थान पर बर्फ में पूरे डूब चुके थे उनका यह रूप देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होने भगवान विष्णु के समीप एक बेर के वृष का रूप ले लिया जिससे वो उस बर्फ से उनकी रक्षा कर सके. कई वर्षो तक भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी तपस्या करती रही जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई तो उन्होने देखा की उनके साथ साथ माता लक्ष्मी ने भी कठोर तपस्या किया है तो उन्होने माता लक्ष्मी को ये आशीर्वाद दिया की मेरे साथ आपने भी मेरे साथ बद्री के रूप तपस्या पूरा किया है इसलिए लोग मुझे बद्रीनाथ के नाम से जानेगे. इस प्रकार भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा.
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Badri Vishal aur Ganga Maiya ki jai
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