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९ शताब्दी में
राजा जयवर्मा तृतीय
जो कंबुज के
राजा हुआ करते
थे उन्होने लगभग
८६० ईसवी में
अंग्कोरथोम राजधानी की नींव
डाली, यह राजधानी
४० वर्षों तक
बनती रही और
लगभग ९०० ई.
में बन कर
तैयार हुई| अंग्कोरथोम दो शब्दो से मिल कर बना है, अंगकोर+थोम, अंगकोर का अर्थ है शहर और यहाँ थोम का अर्थ राजधानी है | ऐसा कहा जाता था की अंग्कोरथोम राज्य
का संस्थापक कौंडिन्य ब्राह्मण था जिसका नाम वहाँ के एक संस्कृत अभिलेख में देखने को
मिला है | यह कंबोडिया के अंकोर में स्थित है जिसे पहले यशोधरपुर के नाम से जाना जाता
था | अंकोरवाट दो शब्दों से मिल कर बन है अंकोर+वाट जहां अंकोर का अर्थ है सिटी यानि शहर और वाट का अर्थ है टेम्पल यानि मंदिर अर्थात मंदिरों का शहर | अंकोरवाट का मंदिर विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारकों में से एक है यह मंदिर
विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मन्दिर परिसर के लिए माना जाता है | यह मंदिर भगवान विष्णु
को समर्पित १२ शताब्दी में राजा सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा बनवाया गया, परन्तु वे इस
निर्माण के कार्य को पूर्ण नहीं कर पाए फिर इस
मंदिर को उनके उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन जो रिश्ते में भानजे लगते थे उन्होने
इस कार्य को सम्पूर्ण किया | यह मंदिर चोल वंश के मन्दिरों से मिलता-जुलता कहा जाता
है |
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यह मंदिर मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना है, यह संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है, जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है और इस मंदिर चारो तरफ पानी भरा हुआ है जो इसको और भी सुंदर दिखाने में सहयता देता है | मंदिर में ८ शिखर है जिनकी उँचाई ५४ मीटर है और इसका मूल शिखर जो इससे उँचा है
वो ६४ मीटर है | मंदिर को ३.५ किलोमीटर तक लंबी पत्थर की दीवार से घेरा गया है उसके
बाहर ३० मीटर खुली भूमि है और फिर बाहर १९० मीटर
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चौडी खाई है | मंदिर में ८ शिखर है जिनकी उँचाई ५४ मीटर है
और इसका मूल शिखर जो इससे उँचा है वो ६४ मीटर है | मंदिर को ३.५ किलोमीटर तक लंबी पत्थर
की दीवार से घेरा गया है उसके बाहर ३० मीटर खुली भूमि है और फिर बाहर १९० मीटर चौडी
खाई है जो देखने में काफ़ी अद्भुत लगता है | यहाँ मंदिर में पर्यटक केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं, यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त का एक अलग ही अनुभूति होती है जो पर्यटको का मन मोह लेती है |
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यहाँ मंदिर के गलियारों में महाभारत एवं रामायण से संबंधित अनेक शिलाचित्र देखने को मिलते है | रामायण के अनेक महत्वपूर्ण पहलू को प्रदर्शित किया गया है, जिसमें रामायण के बालकांड और उसके बाद विराध एवं कबंध
वध का चित्रण है, भगवान राम द्वारा धनुष-बाण लेकर स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाया
गया है, तो और कही राम की सुग्रीव से हुई मैत्री का चित्रण किया गया है और फिर सुग्रीव
और बाली के द्वंद्व युद्ध का चित्रण दिखाया गया है | तो कही अशोक वाटिका में हनुमान
जी और सीता जी का वार्तालाप, तो फिर लंका में राम-रावण युद्ध, और सीता ज़ी की अग्नि
परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य देखने को मिलते है | अंकोरवाट मंदिर में पूरे रामायण के सभी पहलुओ को चित्रित कर के दिखाया गया | पथरों को बेहद खूबसूरती से तराशा गया है , पथरों में जोड़ होने का बावजूद भी कलाकारी बेहद साफ है |
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इस मंदिर का आकर बहुत विशाल होने के कारण इसे मंदिरों के पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है |मिस्र के पिरामिड की तरह यहाँ भी पथरों में बड़ी-बड़ी मूर्तिया देखने को मिलती है | इस मंदिर की वास्तुकला
ख्मेर व चोल शैली पर आधारित है इसके अतिरिक्त वास्तुशास्त्र का भी अनुपम सौंदर्य देखने
को मिलता है | सन् १९९२ में इस मंदिर को यूनेस्को के विश्व धरोहर में सम्मलित कर लिया
गया |
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अंकोरवाट के हिंदू मंदिरों पर बाद में बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा और समय के साथ-साथ उसमे बौद्ध भिक्षुओं ने वहाँ पर अपना निवास स्थान बनाया और यह अब हिंदू-बौद्ध-केंद्र के रूप में अपना पहचान बना लिया है, इसलिए यहाँ पर विभिन्न भागों से हजारों पर्यटक उस प्राचीन मंदिर के दर्शनों के लिए प्रति वर्ष आते है |
वर्तमान समय में अंकोरवाट का मंदिर विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में
से एक माना जाता है क्योकि यहाँ पर ५०% से अधिक विदेशी पर्यटक यहाँ आते रहते है | यह मंदिर कंबोडिया का प्रतिठा इसलिए इसे कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी इसे स्थान दिया गया है
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